ना काट मेरे पंख पिंजड़े के अंधेरों में
ना काट मेरे पंख पिंजड़े के अंधेरों में...
लो उड़ चली मैं अपनी मंजिल की ओर
कब तक बांधेगी मेरे पंखों को पिंजरे की ये डोर
मैंने अपना रास्ता चुन लिया है
मैंने अपना ताना बाना बुन लिया है
मेरी भी ख्वाहिशें हैं, मेरे भी कुछ सपने हैं
मेरी भी मर्यादाएं हैं, मेरे भी कुछ अपने हैं
मेरे पंख कब तक अंधेरे कमरों में कटते रहेंगे
मेरी चीखें कब तक काल कोठरी में तड़पते रहेंगे
उस पिंजड़े की क्या औकात जो मुझे बांध पाए
उन बेगैरत आंखों की क्या औकात जो मुझे झुका पाए
परिवार की जिम्मेदारी ही मेरा पहला कर्तव्य है
मेरे ख्वाबों की जिम्मेदारी भी मेरा पहला धर्म है
मेरी आबरू का सम्मान मेरा आखरी नही पहला अधिकार है मेरे अस्तित्व की पहचान बना पाना मेरी स्त्रीत्व का अधिकार है
स्वरचित
आलोक शुक्ला
आरंग
छत्तीसगढ़
Naresh Sharma "Pachauri"
05-Feb-2022 11:17 AM
बहुत ही सुन्दर
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